Sunday, October 16, 2011

अब नहीं चलेगी दबंगई


मामला अंगनवाड़ी केन्द्रों पर टीएसआर में हो रही गड़बड़ी का
चौतरवा
          आंगनबाड़ी केन्द्रों पर टेकहोम राशन वितरण की ओर अब पंचायतों के जन प्रतिनिधियों की निगाहें सख्त हो गई है। जिससे अंगनवाड़ी केन्द्रों पर सेविकाओं द्वारा दबंगई नहीं चलेगी। यह सब तब हुआ है जब शनिवार को हरदी नदवा पंचायत के मुखिया लक्ष्मण राम पंचायत अंतर्गत कौलाची गांव में स्थित आंगनबाड़ी केन्द्र संख्या 171 पर गए जहां सेविका रूची देवी द्वारा डीएचआर वितरण किया जाना था। गांव के कुछ ग्रामीणों के शिकायत पर मुखिया पहुंचे। वहीं इस बाबत सेविका पति कन्हैया लाल गुप्ता ने बताया कि मुखिया द्वारा रंगदारी की मांग की जा रही थी। जिससे विवाद बढ़ा व जब मुखिया व पंचायत सचिव बगहा गांधीनगर डेरा में पहुंचे थे। वहीं पर सेविका के परिजनों द्वारा मारपीट की गई। जिसकी प्राथमिकी बगहा थाने में दर्ज कराई गई है। उधर पतिलार में बीडीसी जितेन्द्र प्रसाद द्वारा भी कई केन्द्रों की जांच की गई व आवश्यक निर्देश दिया गया। वहीं लगुनहा चौतरवा पंचायत के केन्द्र संख्या 2 और 8 पर टीएचआर का वितरण नहीं किए जाने से लाभुकों में क्षोभ व्याप्त था। इस बाबत उक्त केन्द्र संख्या 2 के सेविका अंजु देवी व 8 के सेविका इंदु देवी ने बताया कि खाते में पोषाहार की राशि नहीं पहुंच सकने के कारण उठाव नहीं हो सका था। उधर चन्द्राहा रुपवलिया व टेसरहिया बथवरिया के मुखिया क्रमश विमला देवी व मीरा देवी द्वारा भी आंगनबाड़ी केन्द्रों पर टीएचआर वितरण का निरीक्षण करने की खबर है। सभी ने कहां कि अब आगनवाड़ी केन्द्रों पर किसी की मनमानी नहीं चलेगी।

पश्चिम चम्पारण : थरुहट में आज भी हैं अंगे्रजी आतंक


बिना थानेदार को चढ़ावा दिये थारु न जन्म लेते हैं, न मरते हैं




  क्या ये भी कभी आजादी की सुबह देख पायेंगे ?
  



  भारत-नेपाल सीमा पर अवस्थित प. चम्पारण के गौनाहा प्रखण्ड की पुलिस अब यहाँ के मूल निवासी थारू जनजाति के युवकों को माओवादी बनाने या घोषित करने की राह पर चल पड़ी है। यहाँ के निरीह थारू समुदाय आज भी पुलिसिया हथकंडे और रौब-रूआब के आगे इस कदर डरे-सहमें दिखते हैं जैसे वहाँ आज भी वे गणतंत्र भारत में न रहकर ब्रिटिश कालीन पुलिस के रहमो करम पर ही रहने को अभिशप्त हैं।
 


 सरकार के मुखिया नीतीष कुमार तथा पुलिस महानिदेषक डी एन गौतम भले ही पुलिस की छवि जनता के मित्र के रूप में बनाने के लिए कवायद कर रहे हंै। लेकिन हकीकत इसके विपरीत है। प. चम्पारण जिले में उक्त दोनों के प्रयास का कोई असर नहीं दिख रहा है। और पुलिस की छवि पहले से और डरावना बन गई है। इसका ताजा उदाहरण गौनाहा थानाध्यक्ष विनोद यादव की करतूते हंै।


सिठ्ठी पंचायत अन्र्तगत विजयपुर गाँव के थारू जनजाति युवक अमरेष कुमार ने चम्पारण क्षेत्र के डीआईजी प्रीता वर्मा को एक आवेदन देकर थानाध्यक्ष की करतूतों को उजागर किया है। इस आवेदन में थानाध्यक्ष पर अरोप लगाया गया है कि उन्होंने अमरेष की खतियानी जमीन से कटे शीषम के सुखे पेंड को पुलिसिया धांैस जमाकर उसके दरवाजे से नवम्बर 30, 2008 को उठवा ले गये। विरोध करने पर उसके परिजनो के साथ थानाध्यक्ष ने अभद्र ब्यवहार किया, इनता ही नहीं उसे जप्ति सूची भी नहीं दी गई। काफी मशक्कत के बाद थानाध्यक्ष ने जप्ति सूचि देने का आश्वासन दिया। कई दिनों तक अमरेश थाने का चक्कर लगाता रहा और थानाध्यक्ष उसे टरकाते रहें। इसी क्रम में जब उसने जनवरी 4, 2009 को थाना परिसर से लकड़ी गायब पाया तो थानाध्यक्ष से इस बात की पूछ-ताछ की। आग बबूला हुए थानाध्यक्ष ने उससे कहा कि उक्त लकड़ी से डीएसपी और एसपी के लिए फर्निचर बन गया है। तुम्हें जहाँ जाना हो जाओंज्यादा फड़फड़ाओगे तो माओवादी घोषित कर जेल भेज दँूगा। थानाध्यक्ष की इस करतूत की शिकायत अमरेश ने डीआईजी से की। डीआईजी ने नरकटियागंज एसडीपीओं को इस मामले की जाॅच का जिम्मा सौपा है।  थानध्यक्ष की यह कोई पहली करतूत नहीं जिसे लिपा-पोती किया जा सके।इसी पंचायत के फचकहर ग्राम के गुमस्ता राम प्रसाद महतो को पुलिस ने मनमाने ढ़ंग से वर्षो पूर्व एक मामले में गवाह बना दिया, चूकि इसकी जानकारीद्वारा गवाही की नोटिस की कोई जानकारी नहीं मिल सकी। न्यायालय से वारंट निर्गत होने के बाद राम प्रसाद ने न्यायालय में उपस्थित हो वारंट रिकाॅल प्राप्त कर थाने को प्राप्त करा दिया। फिर भी गौनाहा थाने की पुलिस उसे बार-बार गिरफ्तार करती रही है। उसने कम से कम चार बार थाने में रिकाॅल की ं उसकी गिरफ्तारी की जाती रही। अािखरी गिरफ्तारी जनवरी के प्रथम सप्ताह में हुई थी। राम प्रसाद थानाध्यक्ष को बार-बार कहता रहा कि उसने पूर्व में ही रिकाॅल जमा करा दिया है । उसने थानध्यक्ष को विगत मुखिया चुनाव के समय भी उसे नौमिनेषन देने से रोकने की बात बताते हुए उसके द्वारा वारंट रिकाॅल जमा करने की बात बताई और तब जा कर वह अपना नौमिनेषन दाखिल किया था, किन्तु थानाध्यक्ष बातों को मानने को कतई तैयार नहीं थे। और न तो इस विषय में वे किसी से कुछ पुछना ही मुनासीब समझतें थे। लिहाजा वे थारू जनजाति के एक संभ्रात सामाजिक ब्यक्ति राम प्रसाद को 12 घंटे से अधिक हाजत में बंद रखें। तराई तरंग को अपना दुखड़ा सुनाते हुये राम प्रसाद ने थानाध्यक्ष पर अरोप लगाया कि रात में थानध्यक्ष ने उसके परिजनों से ढ़ाई सौ रूपये रिष्वत लेकर छोड दिया। और कहा कि अगले दिन 500 रूपये लेकर आना तब तुम्हारा वारंट सूचि से नाम काट दिया जायेगा।वह कई बार की गिरफ्तारी से अजीज आ चुका था लिहाजा उसने 500 रूपये देकर थानाध्यक्ष से वारंट सूचि से नाम काटने की गुहार लगाई। अब भी उसका नाम कटा या नहीं इसकी जानकारी उसे नही मिल सकी है। यह तो थारू जनजाति बहुल इलाके में पुलिस के हैरतअंगेज कारनामों का छोटा उदाहरण है। चूकि थारू जनजाति बहुल इस क्षेत्र में गुमास्ता द्वारा ही अधिकतर विवादों का निपटारा कर दिया जाता है, जिससें आपसी विवादों से संबंधित मामले थाना नहीं पहुँच पाते हैं। फलस्वरूप पुलिस की कमाई बाधित होती है। लिहाजा पुलिस निरीह थारूओं को धमका कर पैसे ऐंठने के साथ-साथ अवैध खनन एवं वन तस्करों से साठ-गाॅठ कर अपनी काली कमाई को अंजाम देती है। नेपाल सीमा से सटे होने के कारण माओवादियों का इस क्षेत्र में आना जाना रहता है, लिहाजा पुलिस निरीह थारूओं को माओवादी बताकर उनकी गिरफ्तारी का भय दिखाकर पैसे की उगाही करती है। पिछले अक्टूबर महीने में अवैध खनन के पत्थर से लदे ट्र्रैक्टर टेलर को थाना ने 5000 रूपये चढ़ावा के बल पर छोड़ दिया था, लेकिन सूत्रों द्वारा जानकारी पाकर डीएफओ श्री चन्द्रषेखर ने इसकी सूचना पुलिस अधीक्षक के एस अनुपम को दी। संयोगवष पुलिस अधीक्षक जो उसी क्षेत्र में थी,ा उन्होंने थाना को उक्त ट्रैक्टर-टेªलर की जप्ति का आदेश दिया। आदेश मिलते ही थानध्यक्ष के पैरो तले जमीन खिसकने लगी और वे बगैर देरी किये उक्त ट्रैक्टर-टेªलर को जप्त करने बिजयपुर गाँव जा पहुँचे। महिलाओं ने इस जप्ति का कड़ा प्रतिरोध किया। उनका कहना था कि जब रूपये ले लिया तो फिर जप्ति कैसा?




  थानध्यक्ष एसपी के आदेश का हवाला देते हुए गिड़गिड़ाना शुरू किये कि अगर इसे हम जप्त नही करते हैं तो एसपी मेरी नौकरी खा जायेगी। हृदय से साफ सुथरी थारू महिलाओं ने थानाध्यक्ष की नौकरी के नाम पर ट्रैक्टर-टेªलर को जाने दिया।      बहरहाल थानध्यक्ष के खौफनाक हरकत से थारू समुदाय के लोग भयभीत हंै। तराई तरंग ने पुलिस की कारगुजारियों की सत्यता की जानकारी चाही तो पुलिस पर लगे अधिकतर अरोप सही साबित हुए। पुलिस की इस विद्रूप छवि ने सुशासन के सपने को तार-तार कर दिया है। उधर थानाध्यक्ष ने अपने उपर लगे सभी आरोपों को सिरे से खारीज कर दिया।